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फल स्वरूप खुद राजा व करोडों की संख्या में प्रजा का जीवन शांति मय देखा जाता है तो जो संपूर्ण धर्म तत्व की आराधना करे उसका व उसके अनुयाइयों का जीवन कितना पवित्र हो सके इसका पाठकगण स्वयं ही विचार करें. जैन धर्म के प्रत्येक सूत्र विज्ञान की तराजू में तुले हुए हैं जिससे ही यह धर्म पूर्व में विश्वबंध था और वर्तमान से भी हो सकता है किन्तु जैनी कहलाने वाले जैनतत्व को कम समझते है ऐसी हालत में अन्य को तो वे कैसे समझा सकते हैं ।
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विलास - धार्मिक जीवन विताने वालो को इंद्रिय संयम रखना चाहिये वैसा न करने से उनका व अन्य का जीवन जोखम में पड़ जाता है मनुष्य में इंद्रिय संयम न होने से वह विलासी जीवन व्यतीत करता है. विलासी जीवन विताने वालों को धन चाहिये और धन प्राप्ति के लिये वह बने उतना अन्याय अनीति, छल कपट व अत्याचार करता है. इंद्रिय संयम के अभाव में विलास की मात्रा चढ़ती जाती है व ज्यों २ विलासी वासनायें बढती जाती है त्यो त्यो वह स्वार्थी होता जाता है वह अपने एक कोडी के बराबर स्पार्थ के लिये दूसरों का करोड़ों का नुकसान कर बैठता है ।
वादीगर की मोरली के वश होकर सर्प, दीपक के वश होकर पतंग, गंध के वश होकर भ्रमर, रस के चा होकर मच्छी, और स्पर्श के न होकर हाथी अपने प्राण