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(१७) बुद्धि, ऐसा सुंदर शरीर दिया. इस शरीर से माता की. सेवा व धर्म आराधना न करते हुए, आरंभ और परिग्रह में मस्त होकर माता का ही खून करता है. माता की संभाल भी नहीं लेता है जो अपना जीवन नीति, न्याय व सत्य मय बिताता है. वह धर्म रुपी, माता का दूध पान करता है और जो अपनी शक्ति अनीति व अन्याय से आरंभ परिग्रहादि संग्रह में लगाता है वह धर्म रुपी, माता का खून चूस कर माताका ही नाश करता है. मनुष्यों के पास लाखों या करोड़ो रुपये की सम्पति है किन्तु उस सर्व संपति का जन्म दाता धर्म ही है. युवावस्था में मदांध युवक माता का जिस तरह अपमान करते हैं उसी प्रकार इस धर्म रुपी माता का भी इस समय अपमान हो रहा है. मनुष्य शरीर के लिये धन, अन्न, जल, हवा और प्रकाशादि पदार्थ आवश्यक हैं किन्तु धन से अन्न, अन्न से जल, और जल से हवा व प्रकाश विशेष आवश्यक हैं. जो तत्व जितना सूक्ष्म व पतला है वह तत्व भी जीवन के लिये उतना ही उपयोगी है, और जिस तत्व को मनुष्य जितना अधिक मूल्यवान समझता है वह तत्व उतना ही अनावश्यक है.धन के अभाव में मनुष्य करोड़ वर्ष तक जीवित रह सकता है. जल के अभाव में कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, परन्तु हवा के विना क्षणभर भी मनुष्य जीवित नहीं रह सकता है. मनुष्य शरीर के लिये हीरा माणिक