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इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे। जब धर्मिष्ठ पिता की यह हालत है कि उन्हें मरते दम भी दान में श्रद्धा नहीं है तो अन्य आधि-व्याधि-उपाधि से ग्रसित श्रावकों की क्या दशा होगी ?
fear संथारा करने वाले आचार्य से अन्य संप्रदाय के श्रावक आकर अर्ज करें कि पूज्यवर ! आपकी संप्रदाय बड़ी है | हमारी संप्रदाय में सिर्फ दो साधु रह गये हैं । कृपया आपकी संप्रदाय में से पांच साधु भेजकर इस अस्त होती हुई संप्रदाय की रक्षा कर दीजिए। इसका जवाब श्रावकों को क्या मिलेगा उसकी कल्पना इस लेखमाला के पाठक स्वयं कर सकते हैं ।
शरीर विरोधी तत्वों से मनुष्य को जितना भय है उतना भय आत्म-विरोधी तत्वों से नहीं है । प्रथम तो उसे आत्मा के अस्तित्व का भान ही नहीं है । अपनी कभी मृत्यु होगी इसका मनुष्य को बिल्कुल भी विश्वास नहीं है । क्योंकि विश्वास हो तो रेल्वेस्टेशन आने के पहिले मुसाफिर जैसे उतरने की तैयारी करता है वैसे ही वृद्धावस्था प्राप्त होते ही वह परलोक की तैयारी करे ।
कलकत्ते के एक श्रावक ने संदेश मांगा था । जवाव दिलाया गया कि " आयु बढ़ती हो तो उपाधि बढ़ाये और आयु घटती हो तो उपाधि घटाइये । "
जिसे मरने का विश्वास है, श्रद्धा है सो तो मरने
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