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________________ ( ३ ) करनी पड़ी तब कहीं मनुष्य की संपूर्ण शक्ति का मूल्य समझने में वे समर्थ हो सके थे । छोटे बच्चे को मूल्यवान हीरा और मिश्री का टुकड़ा दिया जाय तो वह मिश्री के टुकड़े की रक्षा करेगा. उसके सामने खाने की चीज का मूल्य हीरे से अधिक है । इसी तरह मनुष्य जन्म का मूल्य समझ में नहीं आने से उसके साथ बाल क्रीड़ा हो रही है । आत्मज्ञान हीन प्रत्येक जीव बाल (अज्ञानी) है। नन्हे २ बालक मिट्टी के मकान, मिट्टी के रुपये, पैसे तथा गुड़िया में आनंद मानते हैं और वृद्ध - बाल - सरदार विशाल भवनों, सोने चांदी के टुकड़ों तथा सजीव स्त्री पुत्र रूपी पुतलों में आनंद मग्न हो रहे हैं । अर्थात् दोनों की दशा बाल है। फर्क इतना ही हैं कि बच्चे की बालदशा निर्दोष है और वृद्ध बाल की बाल दशा विषय विकार से परिपूर्ण होने से दोष पूर्ण है । माता बालक को कहती है कि प्यारे ! यह तो खेल J # , है, यह तेरा मकान नहीं हैं । तेरा वास्तविक मकान तो यह बड़ी हवेली है जिसमें अपन रहते हैं । किन्तु बालक माता के वचनों पर विश्वांस नहीं करता । वह तो अपने बनाये हुए रेती के मकान को ही अपना मकान समझता है ऐसे ही वृद्ध बालों को ज्ञानी पुरुष स्वर्ग और मुक्ति के महले बतलाते हैं । किन्तु वे उनकी समझ में नहीं आते। अपने निर्माण किये हुए चूने और पत्थर के मकानों में ममत्व रखकर ही वे अपना जीवन पूरा करते हैं । 1 • ·
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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