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( २१ ) कारक हो उसे नहीं खाना चाहिये हितकारी भोजन करने से शरीर हृष्ट पुष्ट रहता है।
भोजन के लिये उदर के तीन भाग करने चाहिये । एक कड़ी चीजों के लिये, दूसरा पतली चीजों के लिये __ और तीसरा वात, पित्त, कफ के लिये खाली । तात्पर्य यह
है कि जितनी भूख हो उसका तिहाई ऐसा भोजन करना चाहिये जो कड़ा हो और एक तिहाई ध, पानी श्रादि पतली चीजों से भर लेना चाहिये । और रहा एक तिहाई सो उसे खाली रखना । एक तिहाई खाली रखने से कई लाभ हैं। एक तो यह कि श्वास के माने जाने में सुभीता होगा, दूसरे भोजन के बाद पानी या दूध पीना पड़ा तो जगह खाली होने पर ही पिया जा सकता है । ऐसा करने से दो तिहाई भोजन करने से शरीर में वे दोष नहीं पैदा होते जो अपरिमित भोजन करने वालों के शरीर में प्रायः हो जाया करते हैं। ____ भोजन के समय निम्न लिखित भावनामों का अवश्य चितवन करो।
१-मैं अच्छे २ पदार्थ खाता हूं परन्तु मारत देश में लगभग चार करोड़ मनुष्य हमेशा भूखे रहते हैं । मैं