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( २० ) चली जाती है, इसीलिये शरीर रूखा और शिथिल हो जाता है, भोजन अपनी जगह पर नहीं रहता, भोजन का असली लाम उसे नहीं मिलता । इसलिये भोजन करने में बहुत जल्दी नहीं करना चाहिये ।
बहुत धीरे २ भोजन करना भी ठीक नहीं । बहुत धीरे २ भोजन करने से एक तो तृप्ति नहीं होती । दूसरे प्रमाण से अधिक खाया जाता है । भोजन ठंडा हो जाता है और वह पचता भी जरा देरी से है । उसके पचने में विपमता या जाती है।
बिना बोले, विना से तथा जी लगाकर ही भोजन . करना चाहिये । भोजन करते समय चकवक करने, हँसने
तथा और जगह मन चले जाने से वही उपद्रव होते हैं जो बहुद जल्दी गाजन करने में होने हैं । इसलिये भोजन करते समय. नहां तक दो वातं बंद रखनी चाहिये और हॅसना मी बंद नपना चाहिये । मतलब यह है कि भोजन करते समय मन और जगह कहीं नहीं ले जाना चाहिये ।
भोजन करने समय अपने शरीर को देख लेना है। यह देखनन माहिये कि भोजन में कोई ऐसी चीज ही है जो हमारे कार के विन्द्र हो । जो वस्तु हानि