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आना तो अभी बहुत दूर है। शारीरिक सुख के लिये दुनिया में इतनी धूमधाम मच रही है, विज्ञान वेत्ता यह तो भली प्रकार जानते हैं कि यह शरीर क्षणिक है, थोडे
वरसों में इस शरीर को स्नेही जला या गाड देवेंगे तदपि __जब वे उस तुच्छ शरीर सुख के लिए इतना अखूट प्रयत्न
करते हैं तो जो आत्मा को अनादि अनंत शास्त् मान रहा है, स्वर्ग, नर्क, पुण्य, पाप, कर्म तथा उसके फलको मान रहा है, उस व्यक्ति को आत्मिक सुख के लिये कितना यत्न करना चाहिये ? और एरोप्लेन से भी शीघ्र गामी कौनसे वाहन में बैठकर हमें आत्मिक सुख प्राप्त करने के लिये दौडना चाहिये ? मनुष्य भव ही आत्मिक सुख प्राप्ति का एक मात्र ही केंद्र है और इसमे विज्ञानी से भी अनंत विज्ञानी अनंत ज्ञानी हो चुके हैं। जिन्हों ने जीव, अजीच, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष, गुण स्थान, योग, उपयोग, लेश्या, कर्म और कर्म के फल का वर्तमान विज्ञानाओं से भी अनंत पुरुषार्थ करके आविष्कार किया है; उसका शरण लेकर अनंत जीवों ने आत्मिक सुख प्राप्त किया है ।
पाठक वृन्द ! आपको भी यदि आत्मिकसुख की इच्छा हो तो अनंत ज्ञानी के आविष्कारों का शरण लेकर आत्मिक सुख के लिये उनके पादानुसरण करने में कितना प्रयत्न करना चाहिये । इसका विचार करने के लिए वह स्तक सामने रखी गई है।