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सादी-समझ जितनी भी प्रवृत्ति संसार में दिख रही है यह सब केवल एक शरीर के सुख के लिए है, इतने कारखाने, दुकानें, सफाखाने, कोर्ट, वकील, बैरिस्टर, डॉक्टर, मजदूर आदि तथा नगर, कोट, गढ, खाई, तोप, बंदूकें, सैन्य सेनाधिपति, आदि सब एक शरीर के सुख के लिये है। स्त्री, पुत्र, माता, पिता, आदि अपने प्रेमी सज्जनो को त्याग कर देशावर एक शरीर के लिए जाता है। रण संग्राम में बंदूक व तोप के गोले के सामने तक खड़े रहने का मुख्य कारण भी यही है, कहां तक कहा जाय विश्वका तमाम व्यवहार इसी के सुख के लिए ही हो रहा है । विज्ञानी नित्य शरीर सुख के लिए ही नूतन असादृश्य आविष्कार कर रहे हैं। पोस्ट से तार, तार से टेलीफोन और टेलीफोन से वायरलेस, का आविष्कार हुआ, बैल गाडी से घोडा गाडी, घोडा गाड़ी से रेलवे, रेलवे से मोटर, मोटर से स्टीमर, और स्टीमर से आज शीघ्रवेगी एरोप्लेन दिख रहा है। मिट्टी के तेल से गेस और गेस से बिजली की रोशनी; फोनोग्राफ, वायरलेस, टेलीग्राम, एरोप्लेन और विजली आदि का आविष्कार होने पर भी विज्ञानवेत्ता लोग कहते हैं कि हम विज्ञान के पालने ही में झूल रहे हैं। इतने भयंकर से भयंकर और चमत्कारिक आविष्कार करने पर भी वे अपने को विज्ञान के बालक मान रहे हैं। विज्ञान की युवावस्था