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श्रीआत्म-बोध । तन, वन सपति पाय के, मगन न हो मन मांय । कैसे सुखिया होयगा, सोवे लाय लगाय ॥४॥ ठाठ देख भूले मति, ए पुद्गल पर याय ।। देखत देखत थांहरै, जासी थिर न रहाय ।।५।। लूटगे ज्ञानादि धन, ठग सम यह ससार । मीठ वचन उचारि के, मोहफाँसी गल डार ॥६॥ मोह भूत तोकौं लग्यो, करे न तनक विचार । ना मान तो परविले, मतलब को संसार ॥७॥ काया ऊपर थाहरे, सब सूं अधिकी प्रीत | या तो पहले सबन में, देगी दगो नचीत ||८|| विषय टुग्वन को सुख गिने, कई कहाँ लगि भूल । 'श्राप छत्ता वा हुआ, जाणपणा मे चूल ॥९॥ नित प्रति दीखत ही रहे, उदै अस्त गति भान ।
माह न जान भयो कछ, तू तो बड़ो अजाण ॥१०॥ किम से निश्चित तू, सिर पर फिरे जु काल । चार, ता वाव ल, पानी पहिले पाल ॥१२॥ 'माया मा मर ही गा, अवतादि विशेष । नभी या दो नायगा, या मे मीन न मंत्र ||१२|| गोपनमा फिना मिली, 'अपनो मतना मार । TE काल, 'प्रय मत गम वार ||१३||
Ift.tदो रहा, निता पान गर । निाया, पार्टी मटे गवार ||१४|| कोini नी, हाना विषय बिहार । मट
, या जगदपार |१५||