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________________ तीसरा भाग। दोहा-खाना चलना सोवना, मिलना वचन विलास । ज्यों ज्यो पच घटाइये, त्यों त्यों ध्यान प्रकाश ।। ८ ॥ चौपाई सम्यक रत्न त्रय जियमांही । निज तजी और दर्व में नाही ॥ तातै तीनों में निहपाप । शिव कारण यह चेतन आप ॥९॥ (दोहा) आप आप में आपको, देखे दरशन जोय । जान पना सो ज्ञान है, धिरता चारित्रसोय ॥१०॥ अशुभ भाव निवार के, शुभ उपयोग विसतार । सुमिति गुपति व्रत भेदसों, सो चारित व्यवहार ॥११॥ चौपाई बाहिर परिणति चंचल जोग । अन्तर भाव समल उपयोग । दोनो किर्यै बढे संसार । रोमैं निहचै चारित सार ॥१२॥ चारित निहचै अरु व्यवहार । उभय मुक्ति कारन निरधार ।। होंही ध्यान ते दोनों रास । कीजे ध्यान जतन अभ्यास ।।१३।। राग निवारण अंग अरे जीव भव वन विपै, तेरा कौन सहाय । जिनके कारण पचि रह्या, तेतो तेरे नाय ॥१॥ ससारी को देखिले, सुसी न एक लगार । अब तो पीछा छोडिदे, मत धर सिर पे भार ||२|| झूठे जग के कारणे, तू मत कर्म बँधाय । तू तो रीता ही रहै, धन पैला ही साय ॥३॥
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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