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तीसरा भाग ।
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बखाणे॥२३॥
अवसर उचित बोलि नवि जाणे, ताकुँ ज्ञानी मूक सकल जगत जननी हे दया, करत सहु प्राणि की मया ।
पालण करत पिता ते कहिये, ते तो धर्म चित्त सहिए ||२४||
मोह समान रिपु नहीं कोई, देखो सहु
अन्तरगत हो जोई। धर्म एक आधार ||२५||
सुख में मित्र सकल ससार, दुख में डरत पाप थी पंडित सोई, हिंसा करत मूढ सो होई । सुखिया सन्तोपी जग मांही, जाऊँ त्रिविध कामना नाहीं ||२६|| जाकु तृष्णा अगम अपार, ते म्होटा दुखिया तनुधार । थया पुरुष जे विषयातीत, ते जग मांहे परम अभीत ||२७| मरण समान भय नहीं कोई, चिंता सम जरा नवि होई । प्रवल वेदना क्षुधा बखानो, वक्र तुरग इन्द्रि मन जानो ॥ २८ ॥ कल्पवृक्ष संजम सुखकार, अनुभव चिंतामणी विचार | काम गवी वर विद्या जाण, चित्रावेलि भक्ति चित्त आण ||२९|| सजम साध्यां सविदुख जावे, दु.ख सहु गयां मोक्ष पद पावे । श्रवण शोभ सुगिये जिनवाणी, निर्मल जिम गंगा जल पाणी ॥३०॥ करकी शोभा दान बखाणो, उत्तम भेद पंचतस जाणो । भुजा वले तरिए ससार, इण विध भुजा शोभ चित धार ॥ ३१ ॥
( ब्रह्मविलास ) उपदेश - पच्चीसी
वसत निगोद काल वहु गये, चेतन सावधान नहीं भये । दिन दस निकस बहु फिर पड़ना, एते पर एता क्या करना || १ | अनंत जीव की एक ही काया, उपजन मरन एकत्र कहाया, स्वास उसास अठारह मरना, ऐते० ||२|| अक्षर भाग अनंतम कह्यो, चेतन ज्ञान इहां लो रह्यो । कौन शक्ति कर तहा निकरना,