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काव्य विलास
जो ज्ञाता कर्ता कहै, लगे दोष असमान ॥५॥ ज्ञानी पै जड़ता कहां, कर्ता ताको होय । पंडित हिये विचार के. उत्तर दीजे सोय ॥६॥ अज्ञानी अड़तामयी, करे अज्ञान निशंक । कर्ता भुगता जीव यह, यों भावे भगवंत ॥७॥ ईश्वर की जिव जात है, ज्ञानी तथा अज्ञान । जो जीव को कर्त्ता कहो, तो है बात प्रमान III अज्ञानी कर्ता कहे, तो सब बने बनाव । ज्ञानी हो जड़ता करे, यह तो बने न न्याव ॥६॥ ज्ञानी करता ज्ञान को, करे न कहुं अज्ञान । अज्ञानी जड़ता करे, यह तो बात प्रमान ॥१०॥ जो को जगदीश है, पुण्य पाप क्यों होय ? सुख दुःख किसको दीजिये? न्याय करो वुध लोय॥११ नरकन में जिव डारिये, पकड़ पकड़ के बांह । जो ईश्वर करता कहो, तिनको कहा गुनाह ॥१२॥ ईश्वर की आज्ञा बिना, करत न कोऊ काम । हिंसादिक उपदेश को, कर्ता कहिये राम ॥१३॥ कर्ता अपने कर्म को, अज्ञानी निर्धार ।। दोष देत जगदीश को, यह मिथ्या आचार ॥१४॥ ईश्वर तो निर्दोष है, करता भुक्ता नाहिं । ईश्वर को कर्ता कहै, वे मूरख जगमाहिं ॥१५।।