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काव्य विलास
५॥
ईश्वर की गति अगम है, पार न पायी जाय । वेद स्मृति सब कहत है, नाम भजोरे भाय ||४|| ईश्वर को तो देह नहिं, अविनाशी अविकार । ताहि क श देह धर, लीनो जग अवतार ||५|| जो ईश्वर अवतार ले, मरे बहु पुनः सोय ! जन्म मरन जो धरत है, सो ईश्वर किम होय ॥६॥ एकनकी घां होय, मरे एक ही आन । ताको जो ईश्वर कहैं, वे मूरख पहिचान ॥ ७ ईश्वर के सब एक से, जगत मांहि जे जीव । नहिं किसी पर द्वेष है, सब पैं शांत सदीव ||८|| ईश्वर से ईश्वर लड़े, ईश्वर एक कि दोय । परशुराम अरु राम को, देखहु किन जग लोय || || रौद्र ध्यान वर्ते जहां, वहां धर्म किम होय । परम बंध निर्दय दशा, ईश्वर कहिये सोय ? ॥१०॥ ब्रह्मा के वरशीस हो, ता छेदन कियो ईस ताहि सृष्टिकर्ता कहे, रख्यो न अपनो सीस ॥११॥ जो पालक सब सृष्टि को, विष्णु नाम भूपाल । जो मार्यो इक बाण सैं, प्राण तजे ततकाल ||१२|| महादेव वर दैत्य को दीनों होय दयाल | आपन पुनः भाग्यो फिर्यो, राख लियो गोपाल ॥ १५ ॥ जिनको जग ईश्वर कहै, वह तो ईश्वर नाहिं । ये ईश्वर व्यावते, सो ईश्वर घट मांहिं ॥ १४ ॥