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काव्य विलास ॐ मन विजय के दोहे । । दर्शन ज्ञान चारित्र जिहं, सुख अभंतप्रतिभास ।
वंदन हो उन देव को, मन धर परम हुलास ॥१॥ मन से वंदन कीजिये, मनसे धरिये ध्यान । मन से आत्मा तत्त्व को, लखिये सिद्ध समान ॥२॥ मन खोजत है ब्रह्म को, मन सब करे बिचार । मन बिन आत्मा तत्त्व का, कौन करे निरधार ॥३॥ मन सम खोजी जगत में, और दूसरो कौन ? खोज ग्रहे शिवनाथ को, लहै सुखन को भौम ॥४॥ जो मन सुलटे आपको, तो सूझे सब सांच । जो उलटै संसार को, तो सब सझै कांच ॥१॥ सत असत्य अनुभव उभय, मनके चार प्रकार । दोय झुकै संसार को, दो पहूँचावे पार ॥६॥ जो मन लागे ब्रह्म को, तो सुख होय अपार । जो भटके भ्रम भाव में, तो दुख पार न वार ।। मन से बली न दूसरो, देख्यो इहि संसार । तीन लोक मे फिरत ही, जात न लागे वार । ८॥ मन दासों का दास है, मन भूपन का भूप । मन सब बातनियोग्य है, मनकी कथा अनूप ॥६॥ मन राजा की सैन सब, इन्द्रिन से उमराव । रात दिनां दौड़त फिरे, करे अनेक अन्याव ॥१०॥