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श्री आत्म-वोध
( ४२ ) गोद लेना अर्थात् पाप को गोद में बिठाना है, वह पुत्र जितने बिषय भोग आरंभ करेगा और जितनी पीड़ी नाम रहेगा वहाँ तक सब पाप में हिस्सा ठेट तक चला आवेगा । नाम का अन्त करने से पाप का अन्त हो जाता है ।
( ४३ ) रामलाल, वरदान आदि कोई भी आपका नाम ले आपके समान नामधारी हज़ारो मनुष्य है । आपको उस नाम से क्या लाभ ?
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(४४) नाम तो पुद्गल का पिड है कर्म है निश्चय से दुखदायी है उससे बचो सब लक्ष्मी को सत्य जैन धर्म का प्रचार करने में विद्या व सदाचार का पुनरोद्धार करने मे लगाने से आपका नाम जर अमर होवेगा ।
(४५) जैसा बीज खेत मे डालोगे वैसे फल लगेंगे, एक सेर जहर पीकर एक तोला उलटी करने से मरण से नही बच सकते, एक सेर जहर की जगह पाच सेर वमन करने से वचने की आशा है । इसी प्रकार संसार खर्च, घर खर्च से अनेक गुण उत्तम दान दोगे तो बचने की आशा है । सब जीवों को सद्बुद्धि प्राप्त होकर सचरित्र की प्राप्ति होओ, यही भावना है ।
कुछ
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