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दूसरा भाग ( ३७ ) क्या वीर्य की दूध, दही, घी जितनी भी रक्षा करते हो
। (३८) थोकडे के ज्ञाता। आपके ज्ञान का सार क्या है। क्या घर के आस पास समुर्छिम मनुष्य तो नहीं मर रहे हैं। घर की, व देश की हालत व जैनियो की दशा को भी कभी चितारोगे ?
और फिजुल खर्च हटाओगे ? शिक्षा प्रचार करके न्याय नीति संपन्न सत्य, शील, पुरुषार्थ और संयम में श्रेष्ठ प्रजा तैयार करने में कितना तन धन मन अर्पण करोगे ? अंत में सब छूटेगा तो हर्ष से अच्छे क्षेत्र में बीज बो देओ, अन्यथा बीज (धन तन बुद्धि) सड़ जायँगे ( नष्ट हो जायँगे) और शुद्ध व उत्तम क्षेत्र मे बीज को बोदेओगे तो आर निपज मिलेगी।
(३९) मिथ्यात्त्वी हजारों ऐसे हैं जिन्होंने सारी पूँजी विद्या प्रचार में देकर जिंदगी सेवा भाव में दे दी हैं, जैन श्रावक कितने ऐसे देखे हैं?
(४०) रोज परिग्रह को पाप का मूल अनत दुःख बढ़ाने वोला, इह लोक परलोक मे भय, चिन्ता, शोक और व्याकुलता पैदा करने वाला चिंत्वन करते हो। क्या वह सच्चे हृदय की भावना हो तो जैन समाज इतनी गिरी हुई रह सकती है ?
(४१) गोद लेने का मोह इसी जन्म में अनेक दुःख का कारण प्रगट दीख रहा है फिर भी मिथ्या रूढी, लोक लज्जा व अज्ञान वश कष्ट उठा कर सब धन औरों को देते हैं। क्या आप परमार्थ में खर्चना अच्छा नहीं मानते ? यदि उत्तम है तो आज से गोद लेने का त्याग कर लेवें और गोद आकर अनर्थ कारी रुढी को मदद न देवें र कलह से बचें