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१ दूसरा भाग (५४) लकवे सरीखे भयंकर रोग भी उपवास से मिट जाते हैं।
(५५) गरमी में तीन उपवास से तो रोग नष्ट होता है वही रोग शीत ऋतु मे दो उपवास से
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मनुष्यत्व प्रकट करने की शिक्षा (१) गरीबों से ज्यादा ब्याज लेकर धर्म ध्यान करने वाले पचेद्रिय की हिंसा करके स्थावर जीवो की दया पालने वाले के समान हैं। ऐसे धन से ऐश आराम करने वाले पंचेन्द्रिय के खूना को पीकर आनद मानने वाले के समान हैं।
बाण्या थारी बांण, कोई नर जाणे नहीं । पाणी पीवे छांण, अण छाण्यो लोहू पिए ॥ १ ॥
(२) घर पर गाय रखने के आरंभ से डरना और बाजारू दूध दही घी खाना यह व्याह के आरंभ से डरकर वेश्या गमन करने के समान है।
(३) कीमती अन्न वन यात्रा और मकान का उपयोग करने से 'निकाचीत' कर्म बंधते क्योंकि ऐसी वस्तु में तीव्र आसक्ति रहती है, और किसी आत्मा के सुपात्र को दान देते हुए भी हाथ धूजते हैं।
(४) स्त्री को पैर की जूती मानने वाले तुम्हारा जन्म कहाँ से हुआ ? ' (५) भगी नीच ? कि उससे वैसा काम लेकर अपमानः करने वाला ?