________________
दूसरा भाग
४१
(३३) शरीर मे विष डालकर सुखी कौन हो सकता है।
(३४) जुल्लाब लेने से रोग भीतर रह जाता है किन्तु उप। वास से रोग जड़ मूल से नष्ट होकर आराम होता है।
(३५) उपवास करने वाले रोगी को मुँह मे और जीभ पर उत्तम स्वाद का अनुभव होवे तब रोग का नष्ट होना ससझना चाहिए।
(६६) शरीर मे जो रोग कार्य करता है वही काम दवाई करती है।
(३७) अनुभवी डाक्टर कहते हैं कि दवाई से रोगी न्यादा विगड़ते हैं।
(३८) दवाई न देनी यह रोगी पर महान् उपकार करने के समान है। केवल कुदरती पथ्य हवा-भावना आदि परम उपकारक हैं।
(६९) ज्यो-ज्यों डाक्टर्स बढ़ते हैं त्यो त्यो रोग और रोगी बढ़ते जाते हैं।
(४०) डाक्टर घद जायँ तो रोग और रोगी भी घट जायें।
(४१) रोगी के पेट मे अन्न न डालने से रोग विचारा आप ही स्वय नष्ट हो जाता है।
(४२) दवाई को निकम्मी समझे वही सच्चा डाक्टर, है ।
(४३) हाथ, पैर आँख को श्राराम देते हो वैसे उपवास करना यह जठर-पेट को आराम देना है।
(४४) अमेरिका में डाक्टर लोग रोगी को उपवास कराके