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श्रीआत्म-बोध (२५) जैसे शरीर मे घाव स्वयं भर जाता है वैसे सब रोग विना दवाई के मिट जाते हैं।
(२६) शरीर मे उत्पन्न हुए विष को फेंकने वाला रोग है। घर के मेले व कचरे को ढांकने तुल्य दवाई है जो थोड़े समय अच्छा दिखाव करके भविष्य मे भयंकर रोग फूट निकलते हैं जब कि शुद्ध उपवासो से रोग के तत्त्व नष्ट होते हैं। यह मेले कचरे को फेंकने के तुल्य है । कचरा फेंकने मे प्रथम थोड़ा कष्ट पीछे बहुत सुख इसी प्रकार तपश्चर्या में थोड़ा कष्ट पड़ता है। कचरा ढांकने मे पहिले थोड़ा आराम पीछे से बहुत दुःख । इसी प्रकार दवाइया से राग ढांकने मे प्रथम लाभ पीछे से बहुत दुख निरन्तर भोगने पड़ते हैं।
(२७) ज्यो दवाई बढ़ती जाती है त्यों रोग भी बढ़ते जाते हैं। मनुष्य दवाइयों की आतुरता व मोह छोड़कर कुदरत के नियम पालेगे तब ही सुखी होवेंगे ।
(२८) दवाई से रोग नष्ट होता है; यह समझ शरीर का नाश करने वाली है । आज इसी से जनता रोगो से सड रही है।
(२९) सरदी लगने पर तम्बाकू आदि दवाई लेना विष को भीतर रखना है।
(३०) एडवर्ड सातवें वादशाह का डाक्टर कह गया है कि डाक्टर लोग रोगी के दुश्मन हैं।
(३१) अज्ञान के जमाने मे दवाई का रिवाज शुरू हुआ था ।
(३२ ) दवाइएँ विप की बनती हैं और वे शरीर में विष. वढ़ाती हैं।