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दूसरा भाग
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(१५) उपवास करने से मस्तिष्क ( मगज ) शक्ति घटती
नही है ।
(१६) मनुष्य का खान पान पशु संसार से भी बिगड़ा हुआ है ।
( १७ ) ज्यादा खाने से शरीर में विष और रोग बढता है । (१८) दुष्काल की मृत्यु) संख्या से ज्यादा खाने वाले की मृत्यु संख्या विशेष होती है ।
( १९ ) ज्यादा खाना अन्न को विष और रोग रूप बनाने के समान है ।
( २० ) कचरे से मच्छर पैदा होते है और उसको दूर करना परम जरूरी है । उसी तरह ज्यादा खाने से रोग रूप मच्छर पैदा होते हैं और उनको भी दूर करना परम आवश्यक है । दूर करने का एक सरला उपाय उपवास ( लंघन ) है |
(२१) ज्यों ज्यों अनुभव बढ़ता है त्यो त्यों डाक्टरों को दवाई के अवगुण (नुकसान) प्रत्यक्ष रूप से मालूम होते जाते हैं ।
(२०) बड़े बड़े डाक्टरों का कहना है कि रोग को पहिचानने में हम सर्वथा असमर्थ हैं । केवल अन्दाज से काम लेते हैं ।
(२३) रोग उपकारक है । वह चेताता है कि अब नया कचरा शरीर में मत डालो, उपवास से पुराने को जला डालो ।
( २४ ) शरीर को सुधारने वाला डाक्टर शरीर ही है । दवाई को सर्वथा छोड़ विवेक पूर्वक उपवास करने से सौ रोगी में निव्वे रोगी सुवरते हैं वही दवाई लेवें तो निव्वे रोगी ज्यादा बिगड़ते हैं ।