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दूसरा भाग
पत्थर को द.स्व का कारण मानता है, कि जब विवेकी मनुष्य उसके असली कारणों को ढढता है और उससे वचता है।
जैनो का ध्येय जीवदया होते हुए भी हिन्सा वढ रही है, जो थोडी विवेक दृष्टि लगाकर विचार करेंगे तो अनेक दोष स्पष्ट मालूम पड़ जायंगे । शास्त्रकारो ने हिन्सा के २७ प्रकार कहे हैं। मन, वचन, काया से पाप करना, कराना व अनुमोदन करना, भूत, वर्तमान और भविष्य काल इन २७ प्रकारो से हिन्सा का पूर्ण त्याग वह अहिन्सा है। ____देखो | श्री उपासक दसांग सूत्र मे सव श्रावको ने केवल सूत के दो वन रक्खे हैं। घर का घो और केवल एक जाति की घर में बनी हुई मिठाई रक्खी है । नाम खोल कर जीवन भर के लिए केवल दो चार शाक रक्खे हैं । अब मुनियो को देखो, सत्र छोटे बड़े काम निज हाथो से ही करने की प्राज्ञा है किसी से कराने की मनाई क्यों है ? कारण हाथो से, विवेक से अल्प पाप होता है व स्वावलम्बीपन रहता है। ग्राज मशीनें और उतावलिए अविवेकी नौकरी से काम लेने मे हजारो गुना पाप बढ़ रहा है।
मोल की चीज़ लेकर जो दाम देते हो उने उसके वन्धेवालो के हाथ पाप करने में मजबूत होते हैं । एक महापुरुप का कथन है कि "एक हहीका बटन लेने वाला हजारो गौवो को काटने वाले कसाइयो के हाथ मजदूत करता है।" इससे नह बात सिद्ध होती है कि अल्पप.प व महापाप का निर्णय विवेक दृष्टि से करना चाहिए । 'त्रज्ञान से दुखकर्वक निमित्तों को भी आर्शीवाद रूप सुखदायी अपन मान बैठते हैं । इसलिए यह शिक्षा लेनी चाहिए कि जीवन की आवश्यकताएं घटाओ । इन्द्रियों को