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श्रीआत्म-बोध ४१-पुत्र को कर्जदार बनाने वाला पापी कि अज्ञानी रखने वाला ?
४२-संतान को विलासी व विषयी बनाने वाले उसे मीठा जहर देते हैं।
४३-धर्म रक्षा के हेतु धर्म कलह करनेवाले धर्म वृक्ष की जड़ काटने वाले हैं । (आज ऐसे दोषी बहुत हैं कारण विज्ञान कम है)
४४-सब दुःख और पापो का मूल कारण अज्ञान है ?
४५–सूर्योदय से सब अन्धकार दूर होता है इसी प्रकार सत्यज्ञान से सब दोष और दुःख दूर होकर सकल सुखो की प्राप्ति होती है।
उपसंहार पाप से जीव मात्र डरते हैं, कारण पाप का फल दु.ख है । जैनशास्त्र मे पाप दूसरा नाम है आरम्भ । अल्पारम्भ अर्थात थोड़ा पाप और और महारम्भ अर्थात् बहुत पाप । अल्प पाप
और महापाप की व्याख्या ठीक न समझने से आज अनेक गृहस्थ व त्यागी लाभ की जगह हानिया उठा रहे है जैसे बिना परीक्षा सीखे जवाहिर खरीदनेवाला ठगा जाता है।
शास्त्र वचनो को समझने के लिए सद्गुरु को बड़ी भारी जरूरत बतलाई गई है । आज इसका पालन थोड़ा होने से पाप के निर्णय मे अन्धकार आ गया है। जैन जनता प्रत्यक्ष पाप अथवा स्वहस्त पाप को बुरा मानती है, परन्तु परोक्ष पाप को य भूल रही है। जैसे अल्पज्ञ जीव लगने वाली लकड़ी क