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दूसरा भाग
आदर्श जैन
विश्व के गिरिराज जैसा है। तलेटी में शान्ति, चोटी पर मुक्ति है। इच्छा को दमकती तलवार मामझता है । मोक्ष-मार्ग का खेचर है। इसके दो पॉखाँ हैं ज्ञान और क्रिया उनसे मोक्ष को पहुँच सकता है। पाप का फल देखे विना पुण्य करता है। मोक्ष से भी मनुष्य जन्म को मॅहगा समझता है । जैन के दोनों बाजू प्रकाश है। विषयी के आगे और पीछे दोनो ओर अंधकार है। ज्ञान को मोक्ष की कुजी या स्क्रू समझे । दूसरे ईट का जबाव पत्थर से देते हैं। जैन सत्कार सन्मान से जवाब देता है।
दु खादि को दुश्मन नहीं परन्तु अनुभव सिखाने वाले उपकारी गुरु समझता है।
समुद्र की भयंकर लहरें जैन गिरिराज को तोड़ नहीं सकती। वासना मे शान्ति का अभाव समझता है।। अक्षरों की वर्णमाला के सदृश गुण का विकास
करता है।