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श्रीआत्म-बोध
साथ ही पानी जैसा नरम |
वायु
अग्नि जैसा उ साथ ही बर्फ जैसा शीतल । जैसा स्फुरायमान साथ ही वृक्ष जैसा स्थिर । सिंह जैसा निडर साथ ही हिरन जैसा डरपोक । सूर्य जैसा प्रखर और चंद्र जैसा शीतल ।
दो महावीर
भरत- बाहुबल
मेरी आज्ञा मान |
प्रभु आज्ञा के सिवाय सर्वथा सदा स्वतंत्र | मैं नरेन्द्र हूँ ।
तू नर जड़ पिण्ड का तो मैं चैतन्य अहमेन्द्र हूँ । देख मेरे आधिपत्य की सत्ता ।
चक्र रत्न बिजली के पंखे के समान हवा करता है ।
गर्विष्ठ पुतला, देख मेरी मुट्ठी ।
अरे यह किस पर ?
हैं, क्या परिणाम होगा ?
अर्थ |
मुट्ठी पीछी कैसे फिरे ?
क्षमा अमृत से विष का नाश ।
मान विष का इस मुट्ठी से नाश करूँ । लोच किया ।
आकाश में देव दुंदुभी । जयनाद ।