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________________ श्रीआत्म-बोध प्राणो के जाते भी धर्म की टेक न छोडूं । हृदय मे धर्म टेक भले ही रख, जीभ से धर्म त्याग दे। धर्म छोड़ने का कहनेवाली जीभ इस देह को दरकार नहीं । जीभ विना का जीवन श्रेयस्कर है। देव परीक्षा करके अपने स्थान को चला जाता है। प्रभव चोर चोरी कहां करनी ? अपार धन वाले धनी के यहां । जिससे उसका मन भी न दुखे । चोरी किस रीति से करनी ? नगरवासियो को अपना परिचय देकर । निश्चिन्त करके ही। धन की गांठ बाँधते समय । जम्बु कुमार के उपदेश से । कर्म की गांठ को तोड़दी। माथा सवारते महराजा सारे बाल काले औरहैं यह एक सुफेद क्यो ? यह तो उपदेशक यमदूत । कालापन छोड़ और सफेदी धारण कर । संसार असार संयम धार ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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