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दूसरा भाग
अपनी आय से समाज सेवा करूँ । नित्य प्रति एक स्वधर्मी को जिमाऊँ । गृहलक्ष्मी की अनुमति लेकर उसे सहभागिनी बनाऊँ । कृपालु देव, दो पेट पालने ही की सामग्री है। सरल तथा सरस एक उपाय है। मैं तपश्चर्या करूं। ना, मुझे भी तो लाभ लेने दो। अपन दोनों बराबर दान करें। नित्य एक बन्धु व बहिन को अन्न विद्या आदि आवश्यक दानदें। समाज सेवा करें जो आत्म-सेवा है। ऋण मुक्त होने को।
अरणक श्रावक अपने खर्च से जिसकी इच्छा हो उसे । समुद्र यात्रा कराता है। मध्य समुद्र में जहाज पहुंचता है। आकाश में अचानक गड़गडाहट और विजली चमकती है। जहाज आकाश पाताल को मुँह करता है। सब जिन्दगी की आशा छोड़ देते हैं। इष्ट देव की आराधना सच्चे हृदय से होती है। देववाणी होती है। अरणक अपना धर्म छोड़ो तो शान्ति हो।