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श्रीश्रात्म-बोध
याचक का उपकार माने ।
आपका खदा का ऋणी ।
वायु के वेग को हॅफाने वाले वेगयुक्त पाँवो से कृपालु फिर ऋण से मुक्त करने के लिए वेग से पधारिए ।
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शिर पर सत्य का मुकुट । ऊपर शील की कलंगी । ललाट पर पुरुषार्थ का सिन्दूर | यह सब धर्म के लिए अर्पित है ।
सब का वह मालिक है । खुद उसका सेवक है ।
पग ।
स्वार्थ पर चलते दुख पावे, पसीजे । परमार्थ पर चलते रांझे । स्वार्थ मे अपंग परमार्थ मे महावीर ।
पुणिया श्रावक.
बाप दादो की सम्पत्ति वह तो समाज की मुझे तो केवल बारह श्राने चाहिए । उसके लिए भी फिर समाज का ऋणी हूँ । प्रभो, उस ऋण से मुक्त कैसे होऊँ ?