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श्रीत्रात्म-बोध
दूसरा माग
आदर्श दान ।
गगा नदी जैसे सपाटे से बहने वाले हाथ । याचक ( मागने वाला) थक ज य, घबरा जाय । परन्तु विनीत भाव से आमत्रण करता ही रहे । कुवेर के भण्डार को क्षण भर में खाली कर दे। अन्दर विश्वास जो ठहरा । हिमालय से तो नए २ मरने बहते ही रहते हैं। मैं वैसा न कर तो मेरी लक्ष्मी गगा वास उठेगी। इवर भ्रष्ठ और उधर भी भ्रष्ट हो जाऊँगा । लोकों के कल्याण के लिए दान नहीं करे। दान करे अपने स्वार्थ के लिए।