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[ ५४] ३७-देवगुरु धर्म
देव। नवकार (नमस्कार ) मन्त्र के पहिले दो पद देव के हैं । अर्थात् अरिहंत और सिद्ध देव हैं। देव सब कुछ जानते और देखते हैं । देव वीतराग अर्थात् पूर्ण समभावी होते हैं। देव को अनंत सुख होता है । देव अनंत शक्तिशाली होते हैं। देव सब विकार और दोषों से रहित होते हैं। उनके पास स्त्री आदि भोग सामग्री नहीं होती, क्योंकि वे राग रहित हैं। तथा धनुष, त्रिशूल, गदा, तलवार, भोला आदि शस्त्र नहीं रखने क्योंकि वे देष रहित और निर्भय हैं।
गुरु। पोछे के तोन पद गुरु के हैं-आचार्य जी, उपाध्याय जी और साध जी के वे पाँच महाव्रतपालते हैं । पाँच महाव्रत ये हैं:. .१-अहिंसा २- सत्य ३–अचौर्य ४-ब्रह्मचर्य
और ५ अपरिग्रह (संतोष)। गुरु भांग, गाँजा, तमाखू आदि सब व्यसनों से रहित होते हैं । गुरु,
। मन्त्र = हितकारी शब्द या वाक्य ।