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स्त्री धन और भोग के सर्वथा त्यागी होते हैं । गुरु दिन रात ज्ञान-ध्यान व तप-संयम से अपनी और पर का कल्याण करते हैं ।
धर्म -
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पवित्र कर्तव्य को धर्म कहते हैं । धर्म से सच्चा सुख मिलता है । धर्म से सब दुःखों का नाश होता है । किसी जीव को दुख नहीं देना, सच बोलना चोरी नहीं करना, ब्रह्मचर्य पालन करना और संतोषी रहना धर्म है । क्षमा, विनय और उदारता'
धर्म है । दान, शील, तप और शुभ भावना धर्म
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है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप भो धर्म हैं ।
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३८-नौ-तत्त्व |
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१, जीव-जो सुख दुःख को जाने, ज्ञान जिसका लक्षण है ।
२, अजीव - जो सुख दुख को न जानें, ऐसे जड़
पदार्थ |
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३, पुण्य-भले काम, जिनसे सुख हो । ४, पाप - बुरे काम, जिनसे दुःख मिले । ५, आश्रव - शुभाशुभ कर्मों का आना ।