________________
३६-चार गति। ससारी जीवों को भटकने (गमन करने) के स्थान को गति कहते हैं । गति चार हैं
१ नारको-नीचे लोक में पापी जीवों को जाने की जगह । जहाँ अनंत दुःख हैं। ___२ तिर्यंच-एकेन्द्रिय, पशु, पक्षी, कीड़े आदि के स्थान । इस लोक में हैं।
३ मनुष्य-स्त्री-पुरुष आदि जो इस लोक
४ देवता-ऊँचे लोक में धर्मी, परोपकारी जीवों के उपजने के स्थान जहाँ बहुत सुख हैं।
सब गति से छूटनेवाले सिद्ध होते हैं। सिद्धों का स्थान सबसे ऊँचा है। वहाँ अनंत सुख है।
॥दोहा॥ नर्क, तिर्यंच अरु देवता, मनुष्य गति ये चार । नीचे नर्क ऊँचे देव हैं, दो गति तिरछी धार ॥२॥ हिंसादिक से नर्क हो, कपटी हो तिर्यंच। सरल-भाव मानव बनै, व्रत तप देव न रंच ॥२॥