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विद्यार्थी -- जी हाँ, सब वस्तुओं ही को क्या, धम के वास्ते हम अपनी देह को भी त्याग सकते हैं
गुरु- धन्य हो, वीर पुत्रो ! और तो क्या, धर्म के लिए प्राण की भी परवा न करना ही सच्चा आत्म-भोग है ।
२५ -- बार शिक्षा
हे वीर बालक, तू वीर प्रभु का पुत्र है तो बहादुर बन । हिम्मत रख । सत्कार्य से पीछे न हद । हे प्यारे बालक, तू जैन है । इसलिए प्रफुल्लित बन | कोध और पैर को छोड़। सब से प्रेम कर और जाहिर कर कि मैं जैन समाज में जन्मा हूँ, अतः प्रत्येक जैन को सगा भाई समझेंगा । चाहे वह ब्राह्मण, राजप्त, ओसवाल या अछूत हो ।
हे वीरपुत्र | चाहे तेरे पास कुछ भी न हो तो भी तू धर्म का विश्वास कर, न्याय नीति को मत छोड़ और आनन्द से बोल कि, मेरा जैन जीवन है । धर्म के पालन से कभी दुःख नहीं होता । जैन समाज ही मेरा पालना, विलास भूमि और यात्रा धाम है ।