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[ ३८ ] प्यारे महावीर-पुत्र ! जगत् को यही जाहिर कर कि, वीतराग ही देव हैं; निग्रंथ ही गुरु हैं: अहिंसामय जैन धर्म ही धर्म है। उसमें जातिपांति का कोई भी भेद नहीं है। हरएक मनुष्य जैन धर्म का पालन करके आत्म कल्याण कर सकता है। खरा मर्द बन कर जैनी मृत्यु से भी नहीं डरता।