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[३६] २४-धर्म-सेवा
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गुरु-तुम इतने सुखो और आनन्दी कैसे हो? विद्यार्थी-माता पिता की कृपा से। . . गुरु-तुम्हारे माता पिता सुखी कैसे हैं ? विद्यार्थी-जैनधर्म के प्रताप से। गुरु-जैनधर्म क्या सिखाता है ? विद्यार्थी-दया करना, सत्य पोलना, चोरी न
करना, ब्रह्मचर्य पालन करना, संतोष
रखना। गुरु-इससे तमको क्या लाभ होगा? । विद्यार्थी--हमारे सब प्रेमी बनेंगे, बैरी कोई न
होगा। सब लोग हमारा विश्वास करेंगे। हमारी बड़ाई होगी और धंधा भी खूब चलेगा। वैभव खूब मिलेगा तो उसे भी धर्म-सेवा में लगायेंगे। नये जैन बनायेंगे।
सबको मदद पहुंचावेंगे। गुरु--जब तुम्हारे सब सुखों का मूल जैन-धर्म हो
है, तो जैन धर्म को अधिकार है कि, वह तुम्हारी सब वस्तुओं का भोग जब चाहे तब माँग सके ?