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[३१] १६-जीभ, आँख, कान करो जीभ से मीठी बात । और सत्य बोलो प्रिय भ्रात ॥ आँख तुम्हारी से प्रियवरो । साधु जनों के दर्शन करो ॥ पढ़ो पुस्तकें चलो देख कर । लगे न जिससे तुमको ठोकर ॥ कान तुम्हारे होते दो । उनसे पाठ सदा सुन लो ॥ सुनो साधुजी के उपदेश । बुरी बात को तजो हमेश ॥
२०-दुःख
माँ-रमण, क्यों रोता है भैया ? रमण-मुझे लकड़ी की चोट लग गई है। बड़ी
पीड़ा हो रही है। माँ-आ वेटा, आ! मैं जरा तेरी चोट पर तेल
लगा हूँ। इससे पीड़ा जल्दी ठीक हो जायगी। रमण--माँ, मुझे बड़ा ही दुःख हो रहा है। माँ-हां वेटा, लगने से दुःख होता ही है। तुम