________________
मे लाना और समाज मे भाईचारा बढाना जैसे जटिल कार्य मे उनका सहयोग हमेशा मिलता रहा है।
उनका मुझ पर भी बड़ा स्नेह था । जब तीन साल पहले लकवे से मै वीमार हो गया था तव उनके कई स्नेह भरे पत्र मुझ को मिले जिससे मुझे बहुत शान्ति मिली और सनोप भी हुआ । वाद में मेरे स्वास्थ्य मे कुछ सुधार होने पर जव में दिल्ली गया तो उनसे मिला था। हमारी अनेक विषयो पर चर्चा हुई। यह मेरी उनसे आखिरी मुलाकात थी। पता नहीं था कि वह इतनी जल्दी हम लोगो से बिछुड जावेगे। बाद मे वह अचानक बीमार हो गए जिस कारण हमको चिन्ता होना स्वाभाविक था। इस बीच मे उनके स्वास्थ मे कुछ सुधार भी हुआ लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था। ईश्वर की इच्छा । अन्त मे वह हम लोगो को छोड़कर चले ही गए। उनके स्वर्गवास से हमको वडा आघात पहुंचा क्योकि वह मेरे अभिन्न मित्रो में से थे। जब भी मै उनसे मिलता था मेरे को बडी शान्ति मिल जाती थी। उनका हसमुख चेहरा और मधुर स्वभाव हमेशा हमको स्मरणीय रहेगा। मै उनकी धर्मपत्नीजी से भी दो-तीन बार मिला था और कई बार उनके यहां भोजन का साथ भी मिला था। लालाजी जैसे बहुत कम व्यक्ति इस ससार मे जन्म लेते है और समाज पर अपनी छाप छोड़कर महाप्रस्थान करते है ।
श्रीमान लालाजी श्री तनसुखरायजी से मेरा परिचय करीवन ३५ सालो से था। दिल्ली निवासी श्री लालाजी जोहरीमलजी सर्राफ बडा दरीवा ने मेरी उनसे मुलाकात करवाई थी। मुझ पर उनके व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा। मैने एक दम निश्चय कर लिया कि श्री लालाजी द्वारा देश व समाज की बहुत सेवा होगी तत्पश्चात क्रमश खडवा, सतना, जवलपुर में हुई भारत दिगम्बर जैन परिषद् के अधिवेशन मे उनसे मुलाकातें हुई । सभा का अधिवेशन व जिस उत्साह से, जिस लगन और सुचारु रूप से करते थे वह तो में ताकता ही रह जाता था। मुझे उन पर गर्व था। समस्त जैनीवर्ग मे रोटी-बेटी व्यवहार चालू हो इस बात के लिए वे सदा ही प्रयत्नशील रहते थे। दस्सा-पूजा-अधिकार के आन्दोलनो के वे समर्थक थे व इस आन्दोलन मे उन्होने काम भी किया था। पूज्य श्री महात्मा गावीजी के सिद्धान्तानुसार वे सदा असहयोग आन्दोलन में भाग लिया करते थे व जेल जाने वालो की वे हर प्रकार से मदद करते थे। खादी आन्दोलन की शुरूपात से ही वे खादी पहनने लगे और जीवनपर्यन्त पहनते ही रहे। दलित-जातियो व अछूतोबार के काम में वे हमेशा सलग्न रहा करते थे। जब सन् १९२६ में कानेस की सेवा मे मेरी सम्पत्ति खत्म हो गई थी तव लालाजी ने ही मुझे उत्साह हिम्मत बढ़ाई थी। मुझे जव लकवा मार गया था तब हमेशा उनके सान्त्वना भरे पत्र प्राते रहे थे और जव ठीक होने के बाद में उनके पास दिल्ली गया तो कुछ कमजोरी तथा प्रेमवश मा जाने की वजह से मै बहुत रोया तब उन्होंने मेरी हिम्मत को सुदृढ बनाया। मुझे धैर्य प्रदान करते रहे। आबू जैन मन्दिर मे यात्रियो पर सरकार ने टैक्स लगाया था उस आन्दोलन में भी उन्होने बहुत काम किया। मेरे मालिक श्री कमलनयननी बजाज के सभापतित्व मे उन्होने 'अग्रवाल महासभा' का अधिवेशन करवाया था। श्री कमलनयनजी उनके काम की बहुत तारीफ करते थे।