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मैं जब-जब भी दिल्ली जाता था तब-तब में रोज उनसे मिलता था। जिस दिन उनसे नही मिलता था उस रात की नीद ही हराम हो जाती थी। लालाजी साक्षात करुणा व दया की मूर्ति थे। मैं उनको एक तरह से देवता ही समझता था वर्धा प्राए थे और हर बार अपने चरणकमलो से मेरे घर को पवित्र किया था । परिषद् के तो वे प्राण ही थे । दिगम्बर जैन परिपद् का अधिकाश काम उन्होने ही किया था । उनकी अभिलाषा थी कि दिल्ली मे समस्त जैनियो का एक कनवेन्शन किया जाय मगर बीमार हो जाने की वजह से उनकी इच्छा अधूरी ही रह गई। भारत जैन महामंडल वर्किंग कमेटी के वे मेम्वर थे ।
वे चार बार दिगम्बर जैन
मेरे तो वे खास मित्र थे । उनके स्वर्गवास से मुझे बहुत दुख पहुँचा । उनके निधन से समाज को व देश की बहुत बडी हानि हुई है। मे हृदय से उनको श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ । लाला तनसुखरायजी ने सैकडो विद्यार्थियो को पुरस्कार दिए और दिलाए । सैकडो नौजवान ( जैन अजैन) को नौकरी से लगाया । अपने यहाँ रखा और दूसरी जगह भी रखवाए। जैन भारतमडल का २० वर्ष कार्य किया । उसमे उन्होने हर प्रकार की मदद की, सहयोग दिया । तिलक बीमा कपनी मे कई नौजवानो को नौकरी से लगवाया। एक प्रकार से जैन सगठन था ।
प्रसिद्ध समाजसुधार और मूकसेवक
जैन
कुमार रांची (बिहार)
श्री रतनेश
स्व० लाला श्री तनसुखरायजी की स्मृति मे आप स्मृति-प्रथ प्रकाशित करने जा रहे है । लालाजी की सेवाए धर्म, समाज एव राष्ट्र के क्षेत्र मे सदैव स्मरण होती रहेगी। आपके कार्य की अवश्यमेव सराहना करूंगा कि कार्यकर्ताओ को उनके दिया जाना चाहिये । जीवितावस्था मे नही तो मरणोपरात ही सही ।
अनुरूप सम्मान इसी तरह
मैंने लालाजी के कई दफा दर्शन किए है और परिषद् के देवगढ अधिवेशन मे उनकी चिर कार्य प्रणाली देखने का अवसर भी मिला है ।
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आशा है आपका प्रयास ऐसा ठोस प्रयास होगा जिसे युगो तक अनुकरणीय रूप में वे स्मृति रूप मे सजो कर रखा जाएगा ।