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मानव-हृदय का आलोक
श्री सुलतानसिंह जैन, एम ए मत्री अ०भा० दि० जैन परिषद शाखा शामली (उ० प्र०) "लाला तनसुखरायजी जैन समाज के ही नहीं अपितु समस्त वैश्य वर्ण के महान् सेवक, कर्मठ कार्यकर्ता, नवयुवको के प्रेरणा-स्रोत, जैन परिषद् के स्थायी स्तम्भ एव मानवता के सच्चे पुजारी थे। उन्हे समाज-सुधारक, राजनीतिक, साहित्यिक, प्रकाण्ड पण्डित, सिद्धहस्त लेखक, धर्मप्राण या और भी कुछ कहे तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। वस्तुत वे सब कुछ कहलाने के सच्चे अधिकारी थे। नि सदेह ऐसे महान् पुरुप का ससार से-उठ जाना, सभी के लिए हृदयबिदारक ही होता है। .... यद्यपि मै कभी उनके दर्शन न कर पाया था; किन्तु उनके कार्य-कलापो से परिचित होकर ही कृत-कृत्य हो गया। उनके 'वीर' में प्रकाशित लेखो से जो प्रेरणा मुझे प्राप्त हुई, उसीके फलस्वरूप मै धार्मिक कार्यों में रुचि लेने लगा और सेवा कार्य को अपने जीवन का प्रमुख उद्देश्य समझकर समाज के अखाडे मे कूदकर समाज-सेवा करने के लिए अनायास ही प्रवृत्त हो उठा। मेरी कोई प्राकाक्षा नहीं कि में क्या बनू और क्या न वनू , किन्तु प्रति-क्षण किसी न किसी सेवाकार्य मे रत रहना अपना प्रमुख कर्त्तव्य समझता हूँ। और उसी मे सुख का अनुभव करता है।
अत मे मेरी हार्दिक कामना है कि लालाजी की दिवगत आत्मा को शान्ति प्राप्त हो और उनके सतप्त परिवार एव स्नेहीजन को धैर्य तथा सान्त्वना मिले। यही नहीं, उनके किये गये कार्य मानव-मात्र के हृदय को सदैव आलोकित करते रहे ।
लगनशील कार्यकर्ता
जनरत्न सेठ श्री गुलाबचन्द टोग्या
इन्दौर स्वर्गीय लाला तनसुखरायजी जैन एक लगनशील, कर्मठ समाज-सेवक थे। उन्होने न सिर्फ जैन समाज की ही सेवा की बल्कि स्वतत्रता संग्राम में भी भाग लिया था।
तिलक इश्योरेंस क. १९३५ मे स्थापित हुई थी। १९३६ मे इसका इन्दौर मे भी ब्राच आफिस खुल गया था। १९४० तक यहा उसका ब्रांच आफिस रहा। इस बीच वे लगभग १२१५ वार इन्दौर पाये । जब भी पाये, मुझसे हमेशा मिलते रहे । समाज-सेवा के सम्बन्ध में ही उनकी चर्चाएं होती रहती थी। भा० दि. जैन परिषद् का कार्य उन दिनो बहुत जोरो पर था। परिषद् के भाप स्तम्भ थे। आपने अपना पूरा जीवन धार्मिक, सामाजिक व राजनैतिक कार्यों मे ही व्यतीत किया । ऐसे कर्मठ कार्यकर्ता को मै अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करता है।
लालाजी की स्मृति मे आप स्मृति-प्रथ प्रकाशित कर रहे है यह प्रसन्नता की बात है -उसकी सफलता की कामना करता हूँ।
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