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________________ है ५००० रु० पूरा नही होगा इसका तो भला करो तत्काल ५०० रु० दे दिये। उनके मन में हर समय यही विचार रहता था कि अपने देश की, धर्म की, जाति की सच्चे चरित्र की और सद्भावना की वृद्धि हो। किसी समय पर कोई आपत्ति आती फिर तो अपनी जान पर खेलना अपना कर्तव्य समभते थे । तन, मन, धन से कुछ उठाकर नही रखते थे। अपनी ताकत से बाहर कोशिश करते थे। किसी ने कहा मेरे घर में आग लग गई। आपने अपने पहनने के कपडे और घर का जो सामान चाहिए था सब उठाकर दे दिया। छात्रवृत्ति छोटी जाति वालो को दिया करते थे और कहा करते थे कि इनका उठाना परम धर्म है। उठे को धया उठाना गिरे को उठाना ही मनुष्य जन्म की सफलता है। दरिद्रान भर कौन्तेय । मा पृच्छेश्वरे धन, व्याधितस्यौषध पथ्य नीरुजस्य किमोषधे । हे कौन्तेय (युधिष्ठिर) दरिद्रो की सेवा कर, धनियो की सेवा करने से कुछ लाभ नही, रोगियो को औषधि की आवश्यकता है । निरोगी पुरुप को औपधि देने से कोई लाभ नहीं। इस बात का मेरे हृदय पर अद्भुत प्रभाव पडा। ऐसे परोपकारी पुरुष को वार-बार प्रणाम हो। पारिवारिक परिचय मेरे दो पुत्रिया हुई । बडी पुत्री विद्यावती श्री लालचदजी को करनाल व्याही गई, जो आजकल रक्षा मत्रालय में कार्य करते है। दूसरी छोटी पुत्री स्वदेशरानी श्री अरिदमनकुमारजी को व्याही गई जो एक्जीक्यूटिव इजीनियर हैं। इस प्रकार दोनो ही कन्यायें मुखी है। अन्तिम समय लडकियो के लिए वाप के बाद बाद क्या वाकी रह गया ? पीहर मे कभी जरा-सी तबियत खराब होती तो लडकी तिलमिला उठती थी। मगर उस वक्त तक मेवा में लगी रही हाय तक नहीं की। हम सब तो वही थे। लेकिन वह प्रभावशाली आत्मा बदल चुकी थी। जब कभी तबियत घबरा जाती तो उनके छोटे भाई की पत्नी जिसके पति को मरे ३० साल हो गए उसको अपनी लडकियो के बरावर रखा। कभी किसी तरह कष्ट नहीं होने दिया। उनका भाव यह रहता था इसे मेरे मरने के बाद भी किसी प्रकार का दुःख न हो । बेचारी परदा करती थी फिर भी पास बुलवाकर बिठला लेते। कहते यह मेरी तीसरी बेटी है। क्योकि उसके कोई नही था । न पीहर मे कोई था। बेचारी कहने लगी मैने पति का दुख आज जाना। सो उस समय वो ऐसे निर्मोही हो गए कि उसके लिए भी कुछ नहीं कहा। ___ लालाजी के सबसे छोटे भाई को गुजरे १७ साल होगए। उन्होंने अपने पीछे तीन लडकिया व एक लडका जो ढाई साल का था, छोडा । लडकिया बडी थी। उनकी शादी का भार इनके ही ऊपर था। उसको भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया। लडकियो की अच्छे घर ५० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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