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भीलो में सुधार
इस सन् में नीमखेडा स्टेट में एक भीलो के बच्चो को सुशिक्षित बनाने का ध्येय सामने रखकर आपने वहा एक आश्रम की नीव डाली और उस समय १० हजार भीलो ने आपके उपदेश से आजन्म मास खाने का त्याग किया। उस श्राश्रम की नीव डालते समय श्रापने एक अच्छी रकम दान मे दी।
सम्मिलित जलूस
सरकार
सन् ४० मे दिल्ली मे भादवें के महीने में जब कि जैन रथोत्सव सरेग्राम निकलता है उस पर मस्जिद के आगे बाजे न बजाने की रोक सरकार ने लगा दी तब आपने प्रथक परिश्रम द्वारा उस पावन्दी को हटवाया और तब से इस प्रकार की पावन्दी फिर कभी भी लगाने की हिम्मत न हुई । श्रापके सप्रयत्न से पावन्दी तो हट गई पर उस समय आपने एक कार्य और भी बडे मार्के का किया और वह यह है कि पहले कभी दिगम्बर तथा श्वेताम्बर भाई आपस मे धार्मिक मामलो मे इकट्ठे नही होते थे, आपने दो बिछडे हुए भाइयों के मिलाने का और उन्हें एक साथ धार्मिक कार्य करने का प्रयत्न किया और वे उसमे पूर्ण सफल भी हुए ।
सन् ४२ मे जब कि विश्वयुद्ध को ज्वालाएं भारत के सिंह द्वार को छूकर लोगो में भय उत्पन्न करने लगी श्रीर राजपूताने के मारवाड़ी भाई कलकत्ता, मद्रास आदि व्यापारिक केन्द्रो को छोडकर अपनी जन्म भूमि की ओर भागने लगे तब आपने दिल्ली जक्शन पर उन मुसीवतजदा मुसाफिरो की हर तरह की सुविधा के लिए रेलवे के श्राफिसरों से मिल कर और लिखा-पढी करके उनका स्थायी प्रवन्ध करवाया ।
और जिसके पुन. प्रकाशन की
दिल्ली की सुप्रसिद्ध साहित्यिक सस्था जैन मित्रमडल धर्मपुरा के आप कई वर्ष तक सफल महामंत्री रह चुके है। इसके अलावा आप दिल्ली की बहुत सी सामाजिक सस्थाओ के सभापति, मंत्री, सस्थापक और सरक्षक है। दि० जैन समाज का एक मात्र साहित्यिक पत्र 'अनेकान्त' जो कि अर्थाभाव से सिर्फ एक वर्ष चलकर वन्द हो गया था आवश्यकता को समाज के विद्वान जोरो से महसूस कर रहे थे। आपके ही हर तरह के त्याग से उसका पुन प्रकाशन प्रारंभ हुआ जो श्राज तक हो रहा है और उससे अच्छी साहित्यिक सेवा हो रही है। जैन समाज का कार्य करते हुए भी आपने राष्ट्र को भुला नही दिया है अपितु आज भी नई दिल्ली काग्रेस कमेटी के आप प्रधान है। तात्पर्य यह है कि लाला तनसुखरायजी जैन स्वय एक महान् सस्था है और उनके मजबूत हाथो मे जैन समाज के हित सुरिक्षत है ।
दिगम्बर श्वेताम्बर तथा स्थानकवासियो को एक प्लेटफार्म पर लाने की स्कीम प्रापके आपको श्रावू माऊट जाने का सुअवसर
दिमाग मे बहुत दिनो ने चक्कर काट रही थी कि अचानक प्राप्त हुआ और वहा पर आबू पर्वत पर बने अपने पूर्वजो करोडो की लागत के जैन तथा हिन्दू मन्दिरो की कलाकृति को देखने तथा अपने आराध्य देव के दर्शनार्थ श्राने वाले यात्रियों पर
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