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फलस्वरूप ऐसा जुलूम निकाला जो दिल्ली के वैश्य जाति के इतिहास में एक अद्वितीय प्रकरण रहेगा ।
खट्टा अत्याचार विरोध प्रयत्न -
सन् ३७ मे खट्टे में जब कि वहाँ के जैन भाइयो पर प्रजनों ने हर तरह के अत्याचार करना प्रारम्भ किये और जैन मन्दिर न बनाने दिया तव प्रापने वहाँ पहुँच कर उन श्रापत्तिग्रसित जैन वन्धुओ को अपने गले लगाकर उनके अधिकारो की रक्षा के निमित्त अपनी जान पर खेल गये । लाला तनसुखरायजी जैन के अथक श्रम का यह फल है कि ग्राज भी खट्टे के जैन भाई और उनके धर्माधिकार सुरक्षित है ।
सिकन्दराबाद अत्याचार विरोध प्रयत्न :
सन् ३८ मे सिकन्दरावाद यू० पी० मे जब कि वहाँ के जैन जुलूसो पर किसी जैनेतर ने जूता फेक कर जैनियो को महाअपमानित किया था और वहाँ अनैक्यता बढ गई थी और वडे भारी झगडे होने की उम्मीद थी तब ऐन मौके पर अपने कई साथियो को लेकर ला० तनसुखराय जी जैन वहाँ पहुँचे और जैन रथ चलवाया तथा मुजरिमो को कडी सजा दिलवाकर सरकार का पीछा छोडा !
मित्रमडल जुलूस का प्रारंभ :
जैन मित्रमडल धर्मपुरा दिल्ली लगभग २३ वर्षो से वीर जयन्ती का उत्सव मनाया करता था, पर सन् ३६ मे आपके सद्प्रयत्न से ग्राम शहर मे जुलूस निकालने की योजना बनी और उसी वर्ष से वह कार्यरूप मे परिरणत भी कर दी गई। प्रथम वर्ष मे हो जुलूस को इतनी अधिक सफलता मिली कि अजनो पर उसका काफी असर हुआ श्रीर जैनेतर जनता ने वीर जयन्ती महोत्सव में शामिल होकर इस बात का सबूत पेश किया कि हम लोग भगवान महावीर स्वामी के अहिसात्मक सिद्धान्तो को लोकोपकारी समझते हैं। जुलूस की योजना ग्राज तक चली आ रही है और प्रतिवर्ष उसमे दूज के चन्द्रमा की तरह तरक्की होती ही रहती हैं। हजारो जैनेतर भाई अव वीर जयन्ती के जुलूस के साथ रहते है तथा सभामंडप मे भी हजारो उपस्थित होती हैं ।
की तादाद मे जनता
मनोरजन हिसा का विरोध :
नई दिल्ली के असेम्बली हाल पर प्रतिवर्ष की गई निश्चित तारीख को यहाँ के सरकारी अफसर कबूतरो को अपनी गोली का निशाना बनाकर अनेक तरह की रंगरलियाँ मनाते और उन तडफते कबूतरो से खिलवाड़ किया करते थे । सन् ३९ मे उस निर्दय पूर्णहिंसा को रोकने के लिए दिल्ली मे आपने जोरदार प्रान्दोलन चलाकर प्रति वर्ष होने वाली हजारो निरपराध कबूतरो की हिंसा को रुकवाया ।
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