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________________ एक प्रस्ताव पास किया कि लक्ष्मी के कोई भी वैतनिक कार्यकर्ता इस चुनाव मे भाग न लें । वास्तव मे इस चुनाव मे लालाजी का स्वयं खड़े होने का कोई इरादा न था । परन्तु उनको लक्ष्मी के सचालकमडल का यह प्रस्ताव नागरिक अधिकारी मे हस्तक्षेप मालूम हुआ । इसलिए लालाजी की जागृत प्रात्मा इस अनाचार एव अत्याचार को वरदाश्त नहीं कर सकी और वह स्वत्वाधिकार के लिए विद्रोह कर बैठी । उधर जैन समाज का नवयुवक वर्ग आपसे यह भाग कर रहा था कि अव जैन समाज का धनिक वर्ग समाज की बेकारी से हमेशा से उदासीन है तो आप कोई कार्य खडा कीजिए । वस लालाजी ने एक मिनट की देर किए विना एक बहादुर समाजसेवक की तरह एक हजार रुपये महीने के लगभग की प्राय की लात मार कर एक बार फिर सफलता के वातावरण से बाहर आकर खडे हो गए । स्तीफा देने के लक्ष्मी की ओर से लालाजी को वापिस बुलाने के बहुतेरे प्रलोभन मिले और बहुतेरे दवाव भी पडे । परन्तु आप अपने निश्चय से इचमात्र भी नही डिगे । आपके मित्र पहले से ही इसके लिए तैयार थे। फौरन ही तिलक बीमा कम्पनी की नीव डाल दी गई। लक्ष्मी बीमा कम्पनी से त्यागपत्र निश्चय किया । लिए एक क्षेत्र से सन् १९३६ मे काग्रेस ने असेम्बली के निर्वाचनो मे भाग लेने का पजाब प्रोविन्शियल काग्रेस कमेटी ने श्रीयुत लालाजी को पजाब असेम्बली के खडा करना चाहती थी । परन्तु लक्ष्मी इन्श्योरेंस कम्पनी के कार्यकर्ताओ ने प्रतिवन्ध लगाकर रोकना चाहा । यद्यपि लालाजी ने असेम्बली के चुनाव मे खडे होने का निश्चय किया था और वे इसके लिए तैयार भी न थे तथापि लालाजी जैसे निर्भीक, देशप्रेमी और स्वाभिमानी व्यक्ति के लिये इस प्रकार का प्रतिबन्ध अपमानजनक और उनकी भावनाओ को ठेस पहुचाने वाला था, अत उन्होने जिन परिस्थितियो मे अपना त्यागपत्र दिया वे निम्नलिखित त्यागपत्र की प्रतिलिपि से प्रगट होती है : -- मैनेजिंग एजेण्ट्स, लक्ष्मी इश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, लाहौर । १० अक्तूबर, १९३६ मैं आपकी सेवा में निम्नाकित कुछ पक्तिया इगित करना चाहता हू कि किस प्रकार लक्ष्मी इन्श्योरेस कम्पनी, जिसकी स्थापना ला० लाजपतराय और प० मोतीलाल नेहरू जैसे देशभक्तो द्वारा हुई है वह उस बात की न केवल अवहेलना ही कर रही है किन्तु जान-बूझकर उसके ध्येय को पीछे पटक रही है। और इस प्रकार इसके कार्यकर्तानो के उत्साह को क्षीण किया है जिन्होने इसमे इसी प्राशा से प्रवेश किया था कि इसके सस्थापको की सद्इच्छाप्रो की पूर्ति सदैव ही इसके प्रबन्धको का लक्ष्य रहेगी और जिससे कि वे अपनी मातृभूमि के प्रति अपनी सद्भावनाओ के बाह्य प्रदर्शन का अवसर पाते रहेगे । २८ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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