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________________ उन्नति की और पजाब प्रांत मे वह एक आदर्श संस्था मानी जाने लगी। इस सस्था द्वारा हरिजनो और उनके वे बच्चे जिनको सरकार ने कभी भी शिक्षित बनाने की चिन्ता नहीं की, उस सस्था द्वारा शिक्षा लेकर अपना अहोभाग्य समझते थे। आपके इस परमार्थ एवं लोकोपकारी कार्य से दूसरो पर अच्छा असर पड़ा। पजाव प्रांत के लोगो ने इस कार्य की अति सराहना की और तभी से हरिजनोबार का कार्य भारत में प्रचलित हुमा। . निस्वार्थ भाव से आश्रम की सेवा करते हुए उन दिनो कई ऐसे देशहित के कार्य किये जिससे आप जनता के श्रद्धा पात्र बन गये। यही वजह हुई कि सन् १९३२ मे आपको पजाव प्रान्तीय कापस कमेटी का मेम्बर चुना गया था। रोहतक में इतना कार्य करने के पश्चात् पाप देहली लक्ष्मी के प्राच माफिस मे आये । रोहतक बाढ़ में हरिजनों की सेवा सन् १९३३ रोहतक में एक भयकर बाढ़ आगई । उच्च जातियो के सहायतार्थ पर्याप्त धन-धान्य एकत्र करके सहायता-कार्य जनता की ओर से चल रहा था। परन्तु हरिजनो को जो वास्तव में सहायता के अधिकारी थे, पर्याप्त सहायता न पहुच रही थी। अतः आपने हरिजन रिलीफ फड की स्थापना करके लगभग १५००० रु० की एक अच्छी राशि से हरिजनो को समुचित सहायता दी। स्थान परिवर्तन बीमा व्यवसाय मे आप लक्ष्मी बीमा कम्पनी के अधिकारियो के ऊपर अपनी योग्यता की छाप डाल चुके थे । कम्पनी ने आपकी योग्यता से और भी लाभ उठाने के लिए सन् १९३३ ई मे पापको रोहतक से देहली ब्राच का सेक्रेटरी बनाकर भेजा । सन् १९३४ ई में भारत के हृदयसम्राट ५० जवाहरलाल नेहरू ने रोहतक मे दौरा प्रारम्भ किया। इस इलाके के दौरे मे लाला तनसुखरायजी उनके साथ दौरे पर रहे और इस दौरे मे देश-कार्य के लिए उन्हें बड़ा उत्साह प्राप्त हुआ। सन् १९३६ में वे दिन राष्ट्रीय भारत अपने जीवन में एक नया अध्याय आरम्भ करना था । उसने निश्चय किया कि ब्रिटिश सरकार को अपने बनाये हुए जाल में फास ले। साथ ही जो सन् १९३५ का विधान राष्ट्र के लिए चलेज था उस चैलेंज को स्वीकार करके उसके देने वालो को बता दें कि आज राष्ट्र जाग चुका है और वह भी समझता है कि उसके दिन राष्ट्र के सेवको के लिए मजबूत हाथो मे सुरक्षित है, न कि पूजीपति चापलूसो के। इसके लिए सारे भारतवर्ष मे उन योग्य व्यक्तियो की तलाश प्रारम्भ हुई, जिन्होने अपने इलाके में जनता-जनार्दन की नि स्वार्थ सेवा की है, उनके लिए कुछ त्याग किया है। रोहतक जिले के इलाके से जो इस समय तक लाला तनसुखरायणी सार्वजनिक कार्यक्षेत्र से लक्ष्मी मैनेजिंग डायरेक्टर सा. के दोस्त उम्मीद करते थे कि लक्ष्मी के डायरेक्टर्स माफ बोर्ड ने अपनी मीटिंग में [२७
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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