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इसी प्रकार जैन-दर्शन ने जलालुद्दीन रूमी एव अन्य अनेक ईरानी सूफियो के विचारो को प्रभावित किया । अहिसा सिद्धान्त मानव-जीवन का सर्वोच्च सिद्धान्त है। प्रत्येक प्रगतिशील आत्मा उससे आकृष्ट हुए विना नहीं रह सकती। अनेक कारणो से, जिनके विस्तार में जाने की यहाँ प्रावश्यकता नहीं है, जैन जीवन-धारा व्यापक रूप से मानव-समाज को अधिक समय तक परिप्लावित नहीं कर सकी । उसके अनुगामी स्वय अनाचार और मिथ्याचार में फंस गये। भाज हमे फिर अहिंसा की उस परम्परा मे नई प्राण-शक्ति का संचार करना होगा। गाधीजी ने अपने जीवन का अर्घ्य देकर एक बार उसे देदीप्यमान कर दिया। किन्तु हमे निरन्तर साधनामय जीवन से उस अग्नि को प्रज्वलित कर अपनी प्राण शक्ति का प्रमाण देना होगा। सत्य और अहिंसा के आदर्श को व्यवहार में प्रतिष्ठित करने के सहजमार्ग को न स्वीकार कर यदि केवल वाक्य, तकं और प्रमाण चातुर्य का मार्ग ग्रहण किया जायगा, तो विश्वधर्म के महाकाल के विधान मे जैनधर्म के लिए कोई आशा नही।
___ "यदि जिन-मानितधर्म अनेक मिथ्या आडम्बरो, पार्यहीन आचारो आदि को त्यागकर दया, मैत्री, उदारता, शुद्ध जीवन, आन्तरिक और बाह्य प्रकाश और प्रेम की उदार तपस्या द्वारा अपने में अन्तनिहित जागृत जीवन का परिचय दे सके तो सब अभियोग और आरोप स्वय शात हो जायेंगे और इससे जन स्वय धन्य होगे तथा समस्त मानव सभ्यता को भी वे धन्य करेंगे।"
संस्कृत साहित्य के विकास में जैन विद्वानों का सहयोग
डा० मंगलदेव शास्त्री, एम. ए., पीएच.डी. भारतीय विचारवारा की समुन्नति और विकास मे अन्य आचार्यों के समान जैन आचार्यों तथा ग्रन्थकारो का जो वडा हाथ रहा है उससे आजकल की विद्वन्मण्डली साधारणतया परिचित नहीं है। इस लेख का उद्देश्य यही है कि उक्त विचारधारा को समृद्धि मे जो जैन विद्वानो ने सहयोग दिया है उसका कुछ दिग्दर्शन कराया जाय । जैन विद्वानो ने प्राकृत, अपभ्र श, गुजराती, हिन्दी, राजस्थानी, तेलगु, तमिल आदि भाषाओ के साहित्य की तरह सस्कृत भापा के साहित्य की समृद्धि मे वडा भाग लिया है। सिद्धान्त, आगम, न्याय, व्याकरण, काव्य, नाटक, चमचम्पू, ज्योतिप, आयुर्वेद, कोप, अलकार, छन्द, गणित, राजनीति, सुभापित आदि के क्षेत्र मे जैन लेखको की मूल्यवान संस्कृत रचनाएं उपलब्ध है । इस प्रकार खोज करने पर जैन संस्कृत साहित्य विशाल रूप मे हसारे सामने उपस्थित होता है । उस विशाल साहित्य का पूर्ण परिचय कराना इस अल्पकाय लेख मे सभव नहीं है । यहा हम केवल उन जैन रचनामो की सूचना देना चाहते है जो महत्वपूर्ण है । जैन सैद्धान्तिक तया आरभिक ग्रन्थो की चर्चा हम जान-बूझकर छोड़ रहे है। जैन न्यायजैन न्याय के मौलिक तत्त्वो को सरल और सुवोधरीति से प्रतिपादन करने वाले
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