________________
से मिलने का चाव निरन्तर बढ रहा है । वह अपनी समता नाम की सखी से कहती है कि पति के दर्शन पाकर मैं उसमे इस तरह मग्न हो नाऊगी जैसे बूद दरिया मे समा जाती है । मैं अपनपा खोकर पिथ से मिलू गी, जैसे ओला गल कर पानी हो जाता है ।' अन्त में पति तो उसे अपने घट मे ही मिल गया, और वह उससे मिलकर इस प्रकार एकमेक हो गई कि द्विविधा तो रही ही नही । उसके एकत्व को कवि ने अनेक सुन्दर दृष्टान्तो से पुष्ट किया है । वह करतूति है और पिय कर्ता, वह सुख-सीव है मोर पिय सुख सागर, वह शिव- नीव है और पिय शिव मंदिर, वह सरस्वती है और पिय ब्रह्मा, वह कमल है और पिय माधव, वह भवानी है और पति शकर, वह जिनवाणी है और पति जिनेन्द्र ।"
कवि ने सुमति रानी को 'राधिका' माना है। उसका सौन्दर्य और चातुर्य सब कुछ राधा के ही समान है । वह रूप-सो रसीली है और भ्रम रूपी ताले को खोलने के लिए कीली के समान है। ज्ञान भानु को जन्म देने के लिए प्राची है और आत्म-स्थल मे रमने वाली सच्ची विभूति है । अपने धाम की खबरदार और राम की रमनहार है। ऐसी सन्तो की मान्य, रस के पथ और ग्रन्थो मे प्रतिष्ठित और शोभा की प्रतीक राधिका सुमति रानी है । 3
४०० ]
१. मैं बिरहिन पिय के आधीन
त्यौ तलफों ज्यो जल बिन मीन ॥८॥ होहु मगन मै दरशन पाय
ज्यो दरिया मे बूद समाय ||६|| पिय को मिलो अपनपो खोय भोला गल पाणी ज्यो होय ||१०||
- बनारसी विलास, अध्यात्म गीत, पृ० १६१ २ पिय मोरे घट मै पिय माहि, जलतरंग ज्यो दुविधा नाहि । पिय मो करता मे करतूति, पिय ज्ञानी मैं ज्ञान विभूति ॥ for सुखसागर मे सुख -सीव, पिय शिवमंदिर में शिवनीव । पिय ब्रह्मा मै सरस्वति नाम, पिय माधव मो कमला नाम ॥ पिय शकर मै देवि भवानि, पिय जिनवर मे केवल वानि ॥
- देखिए वही, प्रध्यात्म गीत, पृ० १६१
३. रूप की रसीली भ्रम कुलप की कीली
शील सुधा के समुद्र भीलि सीलि सुखदाई है । प्राची ज्ञान- मान की प्रजाची है निदान की
सुराची निरवाची ओर साँची ठकुराई है । घाम की खबरदार राम की रमनहार
राधा रस पथति में ग्रन्थन मे गाई है । सतन की मानी निरवानी रूप की निसानी
यात सुबुद्धि रानी राधिका कहाई है || - वनारसीदास, नाटक समयसार, प्राचीन हिन्दी जैन कवि, दमोह, पृ० ७६