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________________ गीता मे कहा गया है न कर्तृत्व न कर्माणि, लोकस्य सजति प्रभु । न कर्मफलसयोग, स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥ "भगवान ससार के न कर्तृत्व को करता है, न कर्मों को रचता है और न ही कर्मों के फल को देता है । किन्तु यह सव स्वभाव है- स्वत होता है ।" पूर्वोक्त कथन से स्पष्ट है कि परमात्मा ससार के प्राणी के अच्छे-बुरे कर्मों का कर्ताधर्ता नहीं है। प्रत्येक प्रात्मा अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी है । भारत देश कर्मभूमि है। कर्मभूमि मे प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए कर्म करता है । कृपक की तरह अच्छे वीज बोकर, परिश्रम के साथ भाग्य निर्माण कर अच्छा-बुरा फल पाता है । अत परमात्मा को किसी भी प्रकार दोपी बनाना उचित नहीं है । तुलसीदासजी ने ठीक ही कहा है-"जो जस करहि सो तसु फल चाखा।" ससार मे दो तत्व है-आत्मा और जड या चेतन और अचेतन । ससार इन तत्वो का सयोग है। सभी दर्शन इन दोनो के अस्तित्व को किसी-न-किसी रूप में स्वीकारते है-निबन्ध नहीं। अन्यथा ब्रह्म की प्राप्ति या मुक्ति सभी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। हमे प्रत्येक प्राणी मै पात्म-तस्व के दर्शन करता है और उसे पाने के लिए प्रत्येक को प्रोत्साहित करता है। अथर्ववेद मे कहा है - 'पुरुषे ब्रह्म ये विदुः ते विदु. परमेष्ठितम् ।' 'अर्थात् प्रात्मा मे जो ब्रह्म का दर्शन करते है वे परमात्मा को जानते है ।" परमात्मा मात्मा से पृथक् नहीं है । अतः आत्मा की अनादिता, अमरता, अविनश्वरता आदि की घोषणा की गई । ससार का कोई भी पदार्थ या तत्व नष्ट नही होता केवल उसकी पर्याये या अवस्थाएं बदलनी है । प्रत्येक तत्व मे तीन गुण पाये जाते है-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य । ससार मे चेतन और अचेतन, प्रात्मा और जड दो तत्व है-द्रव्य है। दोनो का अस्तित्व अमर है। दोनो मे अपनापन हमेशा रहता है । अत "मोक्षशास्त्र" ग्रन्थ मे-आचार्य उमास्वामी ने कहा- "उत्पादव्यय ध्रौव्ययुक्त सत्", "सद् द्रव्य लक्षणम्" अर्थात् प्रत्येक द्रव्य के-अस्तित्व में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रहता है और उसी को द्रव्य कहा जाता है। द्रव्य में गुण और पर्याय होती है। दोनो तत्वो मे अनुरूप उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रहता है । जड मे जड के अनुरूप और चेतन मे चेतन के अनुरूप । जड से चेतन और चेतन से जड की क्रिया असम्भव है । जिसमे ज्ञान, दर्शन की शक्ति या जानने, सोचने-विचारने की शक्ति हो वह चेतन है । चेतन मे दूसरे शब्दो मे अनतदर्शन, अनतज्ञान, अनतसुख और मनतवीर्य-अनतशक्ति होती है। अनतशक्ति तो जड में भी है परन्तु उतनी नहीं जितनी, यात्म-चेतन मे । शेप चेतन की तीन शक्तिया आत्मा मे ही होगी जड मे नही । अत चारो, अनत चतुष्टय आत्मा मे ही पाये जा सकते है। [३७५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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