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ने- स्याद्वाद-सज्ञा से अभिहित किया था। इस विचार-पद्धति को जिस भाषा मे व्यक्त किया जाता है-स्याद्वाद-है। कई जैनाचार्यों ने वर्गीकरण के लिए इसे सप्तभगी न्याय, सप्त नग आदि से विभाजित करने का प्रयत्न किया अपितु वास्तविकता यह है कि वस्तु जब अनन्त धर्मात्म कहे तो सत्य को भी वर्गीकरण के द्वारा सीमा में नहीं बांधा जा सकता। सत्य के लिए भौगोलिक अथवा अन्य कोई भी सीमा नही होती। अतएव मोटे रूप से जैनाचार्यों ने 'नय' को केवल दो भागो मे विभक्त किया १ निश्चय नय २ व्यवहार नय-किन्तु विशालता की दृष्टि से नय की सख्या भी उतनी ही है कि जितनी विचार-पद्धति की।
वास्तव मे उपरोक्त दृष्टिकोण से विचार करने पर सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा कि सत्य का इजारा किसी मत, पन्थ या वाद के पास नहीं हो सकता। विभिन्न मतो, पन्थो, वादो को समत्व की दृष्टि से विचारा जावे तो उनमें एकता परिलक्षित होगी। विश्व मे धार्मिक असहिष्णुता का नाम शेष करने के लिए-समन्वय-की आवश्यकता हैसर्व धर्म समभाव-को जन्म देगी। इस युग के महान विचारक सन्त महात्मा गांधी ने सर्वधर्म समभाव को अपने द्वारा निर्दिष्ट ११ वृप्तो मे स्थान दिया है। गाधीजी के प्राध्यात्मिक उत्तराधिकारी ने उसे-अनाग्रही विचार-कहा। एक प्राचीन जैनाचार्य ने भारतीय षट्दर्शन में विभिन्न नयो दृष्टिकोणो : के माध्यम से सत्य का दर्शन किया। चाहे तत्व की दृष्टि से, चाहे बाद की दृष्टि से ससार का कार्य-अनेकान्त विचार-पद्धति के बिना नहीं चल सकता। यही नही विश्व मे विभिन्नता का राज्य है किन्तु विभिन्नता मे ही एकता का दर्शन पाना जीवन के कलाकार का काम है । धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, कौटुम्बिक आदि क्षेत्र मे यदि अनेकान्त विचार पद्धति से काम न लिया जाये तो सघर्ष अवश्यम्भावी है । और उसका परिणाम-प्रशान्ति । मानव जाति अपनी अशान्ति, दुख, दुख के कारणो के नाश के लिए-धर्म की शरण में जाती है वहाँ पर भी प्रशान्ति ही प्राप्त होगी इस स्थिति में भी जल मे पाग-लग जायेगी इसमें सन्देह नहीं है।
यदि हम सूक्ष्मता से अध्ययन करे तो-अनेकान्त विचार-पद्धति-अहिंसा के विचार से ही हुआ है। अपने से भिन्न विचार रखने वाले के प्रति न्याय करने के लिए ये उसके विचार में भी सत्यता का प्रश विद्यमान होने के विचार को मानव जाति के उद्धारक तीर्थहरो ने जन्म दिया । कहा जाता है कि तीर्थडुरो द्वारा उपदेशित मार्ग मे . चाहे उसे निम्रन्थ धर्म के नाम से पहिचाना जावे चाहे जैन धर्म के नाम से अहिंसा मुख्य है। यह सत्य है कि अनेकान्त विचारपद्धति अथवा स्याद्वाद बौद्धिक अहिंसा है। इस विचार-पद्धति से हम जीवन के किसी भी क्षेत्र मे समन्वयात्मक दृष्टिकोण ले सकते है। राजनीतिक क्षेत्र मे प्रजातान्त्रिक विचार इसी ओर ले जाते है । हमारे देश मे आज Parliamentary Democracy ससदीय प्रजा तान्त्रिक परम्परा चल रही है । इस परम्परा मे बहुमत दल द्वारा गठित सरकार, अल्पमत को अपने विचार प्रदर्शन का अधिकार मान्य करती है। उससे यथासभव लाभ उठाती है, यह राजनीतिक -स्याद्वाद-है। इसी प्रकार कौटुम्बिक क्षेत्र मे भी इस पद्धति का योगदान परस्पर कुटुम्बो मे, कुटुम्ब के सदस्यो में संघर्ष को टाल कर शान्तिपूर्ण वातावरण का निर्माण करेगा, इसमें सन्देह ३६. ]