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हिन्दुस्तान को सब मजदूर-संस्थानो का सचालन प्रहमदावाद के मजदूर-सघ की नीति पर करूं।
१६ आदिवासी-आदिवासियो की सेवा भी रचनात्मक कार्यक्रम का एक प्रग है ।... समूचे हिन्दुस्तान मे आदिवासियो की आबादी दो करोड़ है । ..... उनके लिए कई सेवक काम कर रहे है । फिर भी अभी उनकी संख्या काफी नहीं है।
१७. कुण्ठ-रोगी-यह एक बदनाम शब्द है। फिर भी हम मे जो सबसे श्रेष्ठ या बढ़े-चढे है, उन्ही की तरह कुष्ठ-रोगी भी हमारे समाज के अग है ।। पर हकीकत यह है कि जिन कुष्ठ-रोगियो की सार-संभाल की ज्यादा जरूरत है, उन्ही की हमारे यहाँ जान-बूझकर उपेक्षा की जाती है।
१८ विद्यार्थी-विद्यार्थी भविष्य की प्राशा है। ... इन्ही नौजवान स्त्रियों और पुरुषो मे से तो राष्ट्र के भावी नेता तैयार होने वाले है। विद्यार्थियो को दलवन्दी वाली राजनीति में कभी शामिल नहीं होना चाहिए। उन्हे राजनैतिक हड़ताले नही करनी चाहिए । सव विद्यार्थियो को सेवा की खातिर शास्त्रीय तरीके से कातना चाहिए। अपने पहने-मोढने के लिए वे हमेशा खादी का इस्तेमाल करे।
१९. गोसेवा-गोरक्षा मुझे बहुत प्रिय है । मुझसे कोई पूछे कि हिन्दू-धर्म का वड़े-सेबड़ा बाह्य स्वरूप क्या है, तो मैं गोरक्षा बताऊंगा। मुझे वर्षों से दीख रहा है कि हम इस धर्म को भूल गये है। दुनिया मे ऐसा कोई देश मैने कही नहीं देखा जहा गाय के वश की हिन्दुस्तान जैसी लावारिस हालत हो।
रायचंद भाई के कुछ संस्मरण
महात्मा गांधी ["राष्ट्रपिता गाधीजी ने सत्य और हिसा का मगलमय सदेश विश्व के लिए देकर नवयुग का सूत्रपात किया। वे युगप्रवर्तक थे । मानवजाति का उन्होने अपरिमित उपकार किया। उनके जीवन पर किन-किन महापुरुषो की छाप है, यह जानना भी आवश्यक है । उन्होने श्री मद्रायचद भाई के सस्मरण लिखते समय यह बात स्वीकार की है कि मेरे ऊपर तीन पुरुषो ने गहरी छाप डाली है । टालस्टाय, रस्किन और रायचद भाई । टालस्टाय ने अपनी पुस्तको द्वारा
और उनके साथ थोडे पत्र-व्यवहार से; रस्किन ने अपनी एक ही पुस्तक 'अन्टु दिस लास्ट' जिसका गुजराती अनुवाद मैने 'सर्वोदय' रक्खा है । और रायचद भाई ने अपने गाढ़ परिचय से मेरी शकामो का समाधान किया, इससे मुझे शाति मिली। हिन्दू धर्म में मुझे जो चाहिए वह मिल सकता है ऐसा मन को विश्वास हुआ। इससे मेरा उनके प्रति कितना अधिक मान होना चाहिए, इसका पाठक लोग कुछ अनुमान कर सकते है ।" रायचद भाई के सस्मरण उन्होने स्वय लिखे है । जिसे पढकर प्राप भली प्रकार जान सकेंगे कि गांधीजी के मन मे अहिंसा की विशेष प्रीति कैसे वढी ? इसलिए पूरा लेख यहाँ अविकल दिया जा रहा है ।]
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