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खर्च किया। सेवा-लगन उनमे वचपन से ही थी और विविध सेवा-कार्यों में वे सदा सहयोग देते रहे।
जब राष्ट्रीय आन्दोलन ने देश के नौजवानो मे देशभक्ति की भावना पैदा की तो लालाजी भी उससे अछूते नहीं रहे और सरकारी नौकरी त्याग कर राष्ट्रीय आन्दोलन में योग देने लगे। एक बार तो जेल यात्रा भी कर पाए । राजनैतिक कार्य मे उन्होने लाला लाजपतराय के साथ कार्य किया और वे उनके प्रेरणा-स्रोत रहे तो सामाजिक कार्यों में अ. शीतलप्रसादजी ने वैरिस्टर चम्पतरायजी से प्रेरणा पाई थी। दिगम्बर जैन परिपद के लिए उन्होने अत्यन्त परिश्रम किया था और समाज के नौजवानो के वे प्रेरणा केंद्र थे।
यद्यपि उनका कार्य रचनात्मक ही अधिक था लेकिन वे जैन-समाज पर होने वाले किसी भी प्रकार के अन्याय को बर्दाश्त नही कर पाते थे और उनके जीवन में कई ऐसे प्रसग आए जब उन्हे सघर्प भी करना पड़ा और महगाँव काण्ड तथा आबू मदिर पर सिरोही राज्य की ओर से लिए जाने वाले टैक्स के खिलाफ आन्दोलन कर सफलता पाई।
समाज, राष्ट्र और मानव तक ही उनकी सेवा का क्षेत्र नियमित हो सो वात नही । उनके हृदय मे प्राणीमात्र के प्रति करुणा भाव था और उन्होने शाकाहार के प्रसार मे भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान दिया।
ऐसे सामाजिक, राष्ट्रीय व मानवताप्रेमी लालाजी के प्रति मेरी ही नहीं जन-समान के अनेको बन्धुप्रो के हृदय मे बड़ा आदर का स्थान था। उनकी सेवाएं समाज के इतिहास में अविस्मरणीय रहेगी। और मुझ जैसे मित्र उनकी सौम्य और विनम्रता की मूर्ति को कदापि नहीं भुला सकते । लालाजी गए अब उनके मित्रो और चाहनेवालो का यही कर्तव्य शेप रह जाता है कि उनके कामो को कर उस कमी की पूर्ति करे जो लालाजी के चले जाने से समाज में हुई है। मुझे आशा है कि गुणपूजक जैन-समाज अवश्य उनके गुणो का और कामो का स्मरण कर उनका अनुगमन करेगा।
जब कि सेवा का क्षेत्र अधिक व्यापक बना है तब लालाजी जैसे सेवा-मूर्ति का स्मरण सबको सेवा की प्रेरणा देने वाला होगा।