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________________ सेवामूर्ति ला० तनसुखरायजी ससार मे जो आता है वह तो जाने के लिए ही श्राता है। लेकिन उनका जाना सफल है जो जाकर भी लोगो के हृदय में स्थान पाते है | श्री रिषभदास का अध्यक्ष भारत जैन महामण्डल, बम्बई लाला तनसुखरायजी उन लोगों मे से एक थे जिन्होने अपने शील स्वभाव और सेवा के द्वारा समाज और राष्ट्र मे ऐसा स्थान पाया था जो अविस्मरणीय रहेगा । उनकी सौम्य मुद्रा और विनम्रता इतनी आकर्षक थी कि उनके सम्पर्क मे आने वाला उन्हें भुलाने की कोशिश भी करे फिर भी उन्हे भुला नही पाता । सेवा चाहे परिवार की हो या समाज की, राष्ट्र की हो या मानव की, जो काम करने जैसा दिखाई पड़ा उसमे वे नम्रतापूर्वक लग जाते थे । न रात देखी न दिन, न सुविधा देखी न असुविधा, बस सेवा कार्य में लीन हो जाते थे I लाला तनसुखरायजी का दृष्टिकोण व्यापक और उदार था । उन्होने समाज की सेवा की लेकिन दृष्टिकोण सदा राष्ट्रीय ही रहा। उनकी सामाजिक सेवाएं राष्ट्रीयता की पोपक ही रही थीर दिगम्बर सम्प्रदाय मे जन्म लेकर भी वे सम्पूर्ण जैन समाज को नजर के सामने रखकर काम करते रहे । सन् १९५० की बात है उन्होने मुझे दिल्ली भारत जैन महामण्डल के कार्य के लिए बुलाया। उनकी यह इच्छा थी कि भारत जैन महामण्डल का सगठन दिल्ली, पंजाब और उत्तर प्रदेश मे हो । में उनके घर पर ठहरा था, तब उनके स्नेह व आत्मीयता से पूर्ण श्रातिथ्य का सौभाग्य भी मिला । हमारा यह स्नेह बढता हो गया। फिर तो मिलने-जुलने प्रोर साथ काम करने के कई प्रसग आए जिसमे उनकी समाज के प्रति निष्ठा के दर्शन हुए। लालाजी चाहते थे कि सम्पूर्ण जैन समाज एकत्र आवे और प्रपनी शक्ति, समाज व राष्ट्र व मानवता की भलाई के लिए लगावे । इसी दृष्टि कोण से उन्होने भारत जैन महामण्डल के तत्वावधान मे जैन समाज के सभी सम्प्रदायो के प्रमुख कार्यकर्ताघ्रो का कन्वेन्शन बुलाने का प्रयास किया था। लेकिन स्वास्थ्य एव अन्य कारणो से उनकी इच्छा पूर्ण नही हो पाई पर इस कार्य के लिए उन्होने अथक प्रयास किए थे । यो लालाजी का जीवन सादगीमय होने पर भी वे ग्रागत-स्वागत मे वडे ही उदार थे। सेवा कार्यों के लिए भी उन्होने कभी मितव्ययता नही की बल्कि कई बार सामर्थ्य से अधिक ही १२ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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